Monday, August 20, 2007

आधुनिकता और पुरातनता........

स्वदेशी की जब हम बात करते है तो उसकी जीवंत भावना रेलवे और कार से लौटकर पुराने ज़माने के रथ और bailgadhi को apanana नही है। जब हम राष्ट्रीय shikcha कि बात करते है तो भास्कर के khagolvighyan और गादित अथवा नालंदा वयस्था kee oor लौटना आवश्यक नही है। हमे स्वयम से जुडे और मुख्य मुद्दे से काम है, यहाँ प्रश्न आधुनिकता और पुरातनता के बीच का नही है बल्कि एक आयातित सभ्यता और भारतीय मानस और प्रकृति के बीच अंतर संबंध का है.यह संघर्ष वर्त्तमान और अतीत का नही है बल्कि वर्तमान और भविष्य के बीच की संभावनाओं का है। विदेशी भाषा, जीवन, विचार, और संस्कृति को जानकर उनका उपयोग करे उनसे सहायता प्राप्त करे , तथा आपने आसपास की दुनिया के साथ यही संबंध स्थापित कर सके क्योकि पश्चिम की वैघ्यानिक तार्किक, प्रगतिशील संस्कृत आब विघटन की प्रक्रिया मे है और इस छाड़ डूबी नाव पेर सवार होना हमारे लिए बेतुकापन होगा। पश्चिम के बुद्धिजीवी भी एक नयी आशा से भारत की ऊर देख रहे है, यदि हम आपने गौरवशाली आतीत और सामर्थ्य को त्याग कर यूरोप के विघत्न्शील और मृतप्राय ateet मे aapana vishwash बनाए rakhenge तो यह bade aascharya की बात होगी........
आपके suvichar की praatichha रहेगी........................